Mehandipur Balaji Temple Information

 

There are many temples of Lord Hanuman, but Mehandipur Balaji Temple is one of famous and special temple in Rajasthan. It is believed that if someone is under the control of evil spirits or want to perform exorcism he should visit the Mehandipur Balaji temple, in Rajasthan.

The Mehandipur Balaji temple located in Dausa district in Rajasthan, which is 255 km away from New Delhi. The temple is situated in the middle of the Aravali mountain range.

There are 3 lords in the temple:- Lord Hanuman, Pret Raj and Bhairava. It is said by believers that 1000 years ago Lord Hanuman himself appeared on the stone and asked Pret Raj and Bhairava to stay here and save the humanity from evil spirits.

Mehandipur balaji Legends and History

According to legends Lord Hanuman appeared in dream to his one devotee and indicated him about this place. Lord Hanuman asked him to start worshipping here and heal people suffering from diseases and evil sprites, but priest was unable to locate the exact place due to dense forest and wild animals. Later, he started worshipping Lord Hanuman in form of Balaji and after few days Lord Hanuman appeared in his dream again and showed him path to reach the place. Since then priest and people started worshipping here at Mehandipur Balaji Temple and people started visiting this temple for their healing from evil spirits.

It is said that Lord Hanuman appeared first on Aravalli Hills then Pret Raj and then Lord Bhairava appeared on this same area. Lord Lord Hanuman requested Pret Raj and Bhairava to stay at this place and heal the humans suffering from evils and diseases.

You will find many people behaving strangely near temple area. People can be seen handcuffed, chained and hanged upside down as part of rituals. Anyone who is unknown to the place can be surprised by seeing things like this in this modern time, when deities perform evening and morning prayers many people can be seen struggling with evil spirits.

People come here to get rid of diseases, evil spirits and black magic. Mehandipur Bala ji temple is considered to be the only way of salvation from these evil troubles.

According to temple priest, huge number of devotees reaches to Mehandipur bala ji dham on Saturday and Tuesday to get rid of their problems.

Location and Distance of Mehandipur BalaJi Temple

Exact location: Balaji Temple, Vivek Vihar Colony, Pilot Nagar, Chak Dausa Rural, Rajasthan, India.

Here is map listing of Mehendipur Balaji

Temple Timings

Winters: 6:30 AM to 7:30 PM

Summers: 5:30 AM To 8:00 PM

Delhi to Mehandipur Bala JI – 255 Km

Jaipur to Mehandipur Bala ji – 63.0 km

Chandigarh to Mehandipur Balaji – 502.4 Km

Hindi Information Of Mehandipur Balaji :

राजस्थान राज्य के दो जिलों (सवाई माधोपुर व दौसा) में विभक्त घाटा मेंहदीपुर स्थान बडी लाइन के बाँदीकुई स्टेशन से जो कि दिल्ली , जयपुर, अजमेर , अहमदाबाद लाइन पर है, २४ मील की दूरी पर स्थित है | इसी प्रकार बडी लाइन के हिंडोन स्टेशन से भी यहाँ के लिए बसें मिलती हैं | अब तो आगरा , मथुरा, व्रंदावन, अलीगढ आदी से सीधी बसें जो जयपुर जाती हैं बालाजी के मोड पर रूकती हैं | फंटीयर मेल से महावीरजी स्टेशन पर उतरकर भी हिंडोन होकर बस द्वारा बालाजी रेलवे की बडी लाइन पर बयाना और महावीरजी सटेशनों के बीच दिल्ली, मथुरा, कोटा , रतलाम , बडौदा, मुंबई लाइन पर स्थित है | हिंडोन से सवा घण्टे का समय बालाजी तक बस द्वारा लगता है | यह स्थान दो पहाडियों के बीच बसा हुआ बहुतआकर्षक दिखाई पड्ता है | यहाँ की शुध्द जलवायु और पवित्र वतावरण मन को बहुत आनंद प्रदान करता है |यहाँ नगर जीवन की रचनाएँ भी देखने को मिलेंगी

यहाँ तीन देवों की प्रधानता है -श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्रीकोतवाल (भैरव) | यह तीन देव यहाँ आज से लगभग १००० वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे |इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा -पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस स्थान पर सेवा -पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस समय भी विधमान हैं | सर्व श्री गणेश्पुरी जी महाराज (भूतपूर्व सेवक) श्री किशोरपुरीजी महाराज (वर्तमान सेवक ) | यहाँ के उत्थान का युग श्री गणेशपुरी जी महाराज के समय से प्रारंभ हुआ और अब दिन-प्रतिदिन बढ्ता ही जा रहा है | प्रधान मंदिर का निर्माण इन्हीं के समय मे हुआ | सभी धर्म-शालाएँ इन्हीं के समय में बनीं | इस प्रकार इनका सेवाकाल श्री बलाजी घाटा मेंहदीपुर के इतिहास का स्वर्ण युग कहलाएगा |

प्रारंभ में यहाँ घोर बीहड जंगल था | घनी झाडियों में शेर-चीते, बघेरा आदि जंगली जानवर पडे रहते थे | चोर-डाकुऔं का भी भय था | श्री महंतजी महाराज के पूर्वजों को जिनका नाम अग्यात है , स्वपन हुआ और स्वप्न की अवस्था में ही वे उठकर चल दिए | उन्हे पता नहीं था कि वे कहाँ जा रहे हैं और इसी दशा में उन्होने एक बडी विचित्र लीला देखी | एक और से हजारो दीपक जलते आ रहे है | हाथी-घोडों की आवाजें आ रही है | और एक बहुत बडी फोज चली आ रही है | उस फोज नें श्री बालाजी की तीन प्रदक्षिणाएँ की और फोज के प्रधान ने नीचे उतरकर श्री महारज की मूर्ति साष्टांग प्रणाम किया तथा जिस रस्ते से वे आए थे उसी रसते से चले गये | गोसाँई जी महाराज चकित होकर यह सब देख रहे थे | उन्हे कुछ डर सा लगा और वे वापिस अपने गाँव चले गए किन्तु नींद नही आइ और बार-बार उसी विषय पर विचार करते हुए उनकी जैसे ही आँखें लगी उन्हें स्वपन मे. तीन मूर्तियाँ, उनके मन्दिर और विशाल वैभव दिखाई पडा और उनके कानों में यह आवाज आई-“उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करो | मै अपनी लीलाओं का विस्तार करुँगा |”यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पडा | गोसाँई जी ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया | अन्त में श्री हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्शन दिए और पूजा का आग्रह किया |

दूसरे दिन गोसाँई जी महाराज उस मूर्ति के पास पहुँचे तो उन्होने देखा कि चारों और से घंटा-घडियाल और नगाडों की आवाज आ रही है किंतु दिखाई कुछ नहीं दिया | इसके बाद श्री गोसाँई जी ने आस-पास के लोग इकट्ठे किए और सारी बातें उन्हे बताई | उन लोगो ने मिलकर श्री महारज की एक छोटी सी तिवारी बना दी और यदा-कदा भोग प्रसाद की व्यवस्था कर दी | कई एक चमत्कार भी महाराज की व्यवस्था कर दी | कई एक चमत्कार भी श्री महाराज ने दिखाए किन्तु यह बढ्ती हुई कला कुछ विधर्मियो के शासनकाल मे फिर से लुप्त हो गई | किसी शासक ने श्री महाराज की मूर्ति को खोदने का प्रयत्न कीया | सैकडों हाथ खोद लेने पर भी जब मूर्ति के चरणों का अन्त नही आया तो वह हार-मानकर चला गया | वास्तव मे इस मूर्ति को अलग से किसी कलाकार ने गढकर नही बनाया है, अपितु यह तो पर्वत का ही अगं है और यह समूचा पर्वत ही मानो उसका कनक भूधराकार शरीर है | इसी मूर्ति के चरणों में एक छोटी- सी कुण्डी थी जिसका जल कभी बीतता ही नहीं था | रहस्य यह है कि महाराज की बाईँ और छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ जाने पर भी बंद नही होती |

इस प्रकार तीनों देवों की स्थापना हुई | १९७१ में श्री महाराज ने अपना चोला बदला | उतारे हुए चोले को गाडियों में भरकर श्री गंगा में प्रवाहित करने हेतु बहुत से आदमी चल दिए | चोले को लेकर जब मंडावर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे तो रेलवे अधिकारियों ने चोले का लगेज तय करने हेतु उसे तोला किंतु वह तुलने मे ही नही आया | कभी एक मन बढ जाता तो कभी एक मन घट जाता | अंत में हारकर चोला वैसे ही गंगाजी को सम्मान सहित भेज दिया गया | उस समय हवन, ब्राहाण भोजन एवं धर्म ग्रंथों का पारायण हुआ और नए चोलो में एक नई ज्योति उत्पन्न हुई जिसने भारत के कोने -कोने में प्रकश फैला दिया |

यहाँ की सबसे बडी विशेषता यही है | कि मूर्ति के अतिरिक्त किसी व्यक्ति विशेष का कोई चमत्कार नहीं है | क्या है सेवा, श्रध्दा और भक्ति | श्री महंत जी महाराज भी इस विषय मे उतने ही स्पष्ट है जितने अन्य यात्रीगण | यहाँ सबसे बडा असर सेवा भक्ति का ही है | चाहे कोई कैसा भी बीमार क्यों न हो, यदि वह सच्ची श्रध्दा लेकर आया है तो श्री महाराज उसे बहुत शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करेगे | इसमे कोई सन्देह नही |

भूत-प्रेत की बाधा, पागलपन, म्रगी,लकवा,टी.बी. बाँझपन या अन्य किसी भी प्रकार की कोई बीमारी क्यों न हो अति शीघ्र दूर हो जाती है | यध्पि हम लोग भोतिक विग्यान के युग में रह रहे हैं किन्तु शायद श्रीबालाजी के स्थान पर आकर सब कुछ भूल जाते है और त